Friday, October 23, 2009

ओस की बूँद

ओस की बूँद में
झाँककर देखा है कभी?
सारा संसार नज़र आता है।
एक इंसान में झांको तो ज़रा
झांकने को कुछ भी नहीं।
आओ हम बन जायें
ओस की बूँद
जिसे देखकर शरमाते हैं
दरिया ओ समुन्दर।
बैठ लें पल दो पल
फूल की एक पत्ती पर
बादशाहों की तरह ।
और फिर मिल जायें
ख़ुद अपनी खुदी में।




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